न्याय का वर्गीय चरित्र: जमानती नहीं मिलने पर 25 दिन बाद भी नहीं हुई युवती की रिहाई!

 

घटना सोनीपत के बरोदा थाने के अंदर आने वाले बुटाना की है 29 जून 2020 को दो पुलिसकर्मियों की गश्त के दौरान हत्या के आरोप में दो युवाओं को गिरफ्तार किया गया था जिनमें एक मुख्य आरोपी अमित को पुलिस एनकाउंटर में मार दिया गया था. लेकिन पुलिसकर्मियों की हत्या की घटना से तार जोड़ते हुए सोनीपत पुलिस ने 3 जुलाई को बुटाना से दो लड़कियों को भी गिरफ्तार किया था. दोनों में से एक लड़की को 3 साल से ज्यादा जेल में बिताने के बाद 16 अगस्त को हाई कोर्ट से जमानत मिली लेकिन जमानत की शर्त पूरी नहीं होने पर 20 दिन बाद भी आरोपी युवती की रिहाई नहीं हो पाई है.

गिरफ्तार की गई दोनों लड़कियों में से एक नाबालिक लड़की एनकाउंटर में मारे गए अमित की दोस्त थी. 3 जून, 2020 को गिरफ्तार की गई दोनों लड़कियों को अगले दो दिनों तक पुलिस रिमांड पर रखा गया. पुलिस रिमांड के बाद आरोपी लड़कियों को जेल भेज दिया गया और फिर जब लड़की के परिजन जेल में मिलने गए तो लड़कियों ने परिजनों को आपबीती बताई कि पुलिस कस्टडी में उनके साथ पुलिसकर्मियों ने रेप किया, जातिगत गालियां दी गई और दोनों बहनों का मानसिक उत्पीड़न किया गया.

वहीं एफआईआर के अनुसार पीड़िता की मां ने बताया, “मेरी नाबालिग बेटी के साथ पुलिस वालों ने अलग-अलग जगह पर ले जाकर गैंग रेप किया वहीं दूसरी लकड़ी का भी सामूहिक यौन शोषण किया गया. पीड़िता की मां ने बताया उनको जेल में उनकी बेटी से नहीं मिलने दिया गया और न ही फोन से बात करने दी गई.

जिसके बाद पीड़िता की मां इंसाफ के लिए कोर्ट पहुंची. घर की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि बेटी को न्याय दिलाने के लिए अपना मकान तक बेचना पड़ा. इस मामले को लेकर सोनीपत के सामाजिक संगठनों ने सोनीपत प्रशासन के खिलाफ धरना देते हुए घटना की निष्पक्ष जांच की मांग की थी. वहीं कोर्ट में एप्लिकेशन के बाद पीड़ित लड़कियों के बयान लिए गए और इस मामले में पीड़िता के परिवार की ओर से 30 जुलाई 2020 को सोनीपत महिला पुलिस थाने में पुलिसकर्मी संजय, राधे और संदीप के खिलाफ पॉक्सो एक्ट और आईपीसी की धारा 376(2), 376-D के तहत मामला दर्ज किया गया.

अब तीन साल बाद 16 अगस्त 2023 को हाई कोर्ट ने पुलिसकर्मी की हत्या के आरोप में बंद लड़की को जमानत दे दी. हाई कोर्ट ने इस मामले में सोनीपत सेशन कोर्ट के ऑर्डर पर भी टिप्पणी की है. हाई कोर्ट ने कहा कि आप केवल इस अनुमान के आधार पर पीड़िता को जेल में नहीं रख सकते हैं कि जेल से बाहर जाकर किसी अपराधिक गतिविधि में शामिल होकर खुद का नुकसान कर सकती है जबकि पीड़िता की इस तरह की कोई हिस्ट्री नहीं रही है.

कोर्ट ने जमानत में कहा डिस्क्लोजर स्टेटमेंट के आधार पर पीड़िता घटनास्थल पर मौजूद जरूर थी लेकिन आरोपी पुलिसकर्मियों की चाकू से की गई हत्या में सीधे तौर पर शामिल नहीं थी ऐसे में आरोपी को 3 साल एक महीने तक जेल में रखा गया. आरोपी को हाई कोर्ट से मिली जमानत को एक महीना होने को है लेकिन अब तक रिहाई नहीं हो पाई है. जमानत के बाद रिहाई को लेकर लगाई गई शर्त के चलते आरोपी युवती अब तक जेल में बंद है.

दरअसल युवती के परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर है कि कोई भी जमानती बनने के लिए तैयार नहीं है. हमने जब आरोपी युवती की मां से फोन पर बात कि तो उन्होंने बताया, “मैं जमानत मिलने के बाद से ही जमानती के लिए कोशिश कर रही हूं लेकिन कोई भी जमानती बनने के लिए तैयार नहीं है. केस लड़ने के दौरान ही अपनी सारी सम्पत्ति बेच चुकी हूं, अब जमानत के लिए मेरे पास कोई पैसा नहीं है. इतना ही नहीं हमारे गांव के दलित समाज के लोग भी मेरा साथ नहीं दे रहे हैं और गांव के सरपंच ने भी साथ देने से मना कर दिया है.”

जमानत पर रिहाई के आदेश के बावजूद जमानत से जुड़े पैसे और प्रोप्रटी के कागज जमा नहीं कर पाने की वजह से जेल में रहने को मजबूर कैदियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से भी दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार यदि किसी आरोपी को जमानत पर रिहा कर देने के आदेश के सात दिन के भीतर रिहाई नहीं की जाती है तो यह जेल अधीक्षक का कर्तव्य होगा कि वे जिला विधिक सेवा प्राधिकरण यानी DLSA के सचिव को सूचित करें. वहीं डीएलएसए कैदी की रिहाई के लिए हर संभव तरीके से उसकी सहायता, बातचीत करने के लिए पैरा लीगल वालंटियर या जेल विजिटिंग एडवोकेट को नियुक्त कर सकता है. 

बता दें कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी जमानत मिलने के बावजूद जमानत की शर्त पूरी नहीं कर पाने के कारण जेल में बंद ओडिशा और झारखंड के गरीब जनजातीय लोगों की पीड़ा का उल्लेख कर चुकी हैं. वहीं राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) द्वारा कोर्ट में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार करीबन 5 हजार विचाराधीन कैदी जमानत दिए जाने के बावजूद जेलों में बंद हैं.