आलू का सही भाव नहीं मिलने से किसानों की चिंता बढ़ी!

 

बाजार में आलू की फसल को मिल रही कम कीमत किसानों के लिए चिंता का सबब बन गई है. फसल गुणवत्ता के अनुसार 250-550 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है. किसानों ने दावा किया कि उन्हें उत्पादन लागत निकालने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है क्योंकि आलू की उत्पादन लागत 650-800 रुपये प्रति क्विंटल है. कुरुक्षेत्र में लगभग 30 हजार एकड़ में आलू की फसल होती थी.

आलू किसान राकेश कुमार ने कहा, “मैंने अपनी आलू की उपज 400-550 रुपये प्रति क्विंटल बेची है, लेकिन मेरी उत्पादन लागत 700-800 रुपये प्रति क्विंटल है. सरकार का दावा है कि वह भावांतर भरपाई योजना के तहत किसानों को मुआवजा देती है लेकिन आलू का सुरक्षित मूल्य 600 रुपये प्रति क्विंटल है. यह कम से कम 800 रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिए. एक और आलू किसान सुखचैन सिंह ने कहा, ”मैंने कुछ स्टॉक 500 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बेचा है लेकिन आने वाले दिनों में कीमतें कम होने की उम्मीद है. किसानों के पास सस्ती दरों पर बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. हम बस यही उम्मीद कर सकते हैं कि सरकार हमारे नुकसान की भरपाई करे और समय पर राशि जारी करे.”

वहीं व्यापारियों ने खराब कीमतों के लिए अधिक आवक और कम मांग को जिम्मेदार ठहराया है. थोक में आलू 5 से 6 रुपये किलो और खुदरा में 10 रुपये किलो बिक रहा है. अंग्रेजी अखबार ‘द ट्रिब्यून’ की खबर के अनुसार व्यापारी कुलबीर सिंह ने कहा, “स्थिर मांग के साथ अधिक आवक कम कीमतों के पीछे प्रमुख कारण है. किसानों को ऐसी स्थिति से बचाने के लिए, सरकार को बुआई के दौरान फसलों का सर्वे करना शुरू करना चाहिए और किसानों को सलाह जारी करनी चाहिए कि वे अत्यधिक बुआई न करें ताकि कीमतें न गिरे.”

एक अन्य व्यापारी, अंशुल बंसल ने कहा, “बाजार में हर साल कम दरें देखी जाती हैं, लेकिन इस साल ये दरें थोड़ी जल्दी आ गई हैं. बेहतर कीमतें पाने के लिए, किसानों को बेहतर गुणवत्ता वाली फसलों की ओर रुख करना चाहिए जिन्हें कोल्ड स्टोर में संग्रहीत किया जा सकता है और वर्ष के अंत में बेचा जा सकता है. अभी जो आलू काटा जा रहा है उसे ‘कच्चा’ आलू कहा जाता है और इसे भंडारित नहीं किया जा सकता. मार्च के आसपास जो उपज काटी जाएगी उसे कोल्ड स्टोर में संग्रहित किया जाएगा और अक्टूबर तक बेचा जाएगा और किसानों को उनकी उपज के लिए बेहतर कीमत मिलेगी.

पिपली अनाज मंडी के सचिव पवन कुमार ने कहा, “नवंबर की शुरुआत में कीमतें 1,000 से 1,200 रुपये प्रति क्विंटल थीं, लेकिन जैसे-जैसे आवक बढ़ी, कीमतें धीरे-धीरे कम हो गईं. बाजार में अब तक करीब 5 लाख क्विंटल की आवक हो चुकी है.’