केंद्र सरकार ने पिछले पांच सालों में विज्ञापनों पर ख़र्च किए 3,723.38 करोड़ रुपये!

 

सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने गुरुवार को राज्यसभा में बताया कि पिछले पांच साल के दौरान सरकार ने अपनी नीतियों और कार्यक्रमों के विज्ञापन पर केंद्रीय संचार ब्यूरो (सीबीसी) के जरिये 3,723.38 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. उन्होंने एक सवाल के लिखित जवाब में उच्च सदन को यह जानकारी दी और कहा कि पिछले पांच सालों में विज्ञापन और प्रचार पर सरकार का खर्च नहीं बढ़ा है.

उन्होंने कहा कि 2017-18 में विज्ञापनों पर 1,220.89 करोड़ रुपये खर्च किए गए जबकि 2018-19 में 1,106.88 करोड़ रुपये खर्च किए गए. ठाकुर ने कहा कि सरकार ने 2019-20 में 627.67 करोड़ रुपये विज्ञापन पर खर्च किए जबकि 2020-21 में 349.09 करोड़ रुपये और 2021-22 में 264.78 करोड़ रुपये खर्च किए.

उन्होंने बताया कि मौजूदा वित्त वर्ष में नौ दिसंबर, 2022 तक सरकार ने विज्ञापनों पर 154.07 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.

कांग्रेस सदस्य सैयद नासिर हुसैन ने सवाल किया था कि क्या सरकार को इस बात की जानकारी है कि पिछले कुछ सालों में विज्ञापन और प्रचार पर खर्च कई गुना बढ़ गया है? ठाकुर ने हुसैन के सवाल के जवाब में कहा, ‘उपरोक्त आंकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में विज्ञापन और प्रचार पर व्यय में वृद्धि नहीं हुई है.’

वहीं अंग्रेजी अखबार हिदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, इससे पहले मंगलवार को ठाकुर ने लोकसभा में बताया था कि 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से आठ वर्षों में केंद्र ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में विज्ञापनों पर 6,491.56 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.

उनके जवाब के अनुसार, इन सालों में सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में विज्ञापन पर 3,260.79 करोड़ रुपये और प्रिंट मीडिया में 3,230.77 करोड़ रुपये खर्च किए.

सीपीआई सांसद मुनियन सेल्वाराज के एक अतारांकित सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री ने यह डेटा साझा किया था. सेल्वाराज ने 2014 से अब तक सरकार द्वारा किए गए विज्ञापनों पर खर्च का सालवार ब्रेक-अप मांगा था. सेल्वराज ने इस दी गई अवधि के दौरान विदेशी मीडिया में दिए गए विज्ञापनों पर हुए कुल खर्च का ब्योरा भी मांगा था.

सरकार ने कहा कि उसने वित्तीय वर्ष 2016-17 में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अधिकतम व्यय किया जब उसने इस माध्यम के विज्ञापनों पर 609.15 करोड़ रुपये खर्च किए थे. इसके पहले 2015-16 में उसका व्यय 531.60 करोड़ रुपये और 2018-19 में 514.28 करोड़ रुपये था.

ठाकुर ने कहा कि इस साल 7 दिसंबर तक सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में विज्ञापनों पर 76.84 करोड़ रुपये खर्च किए.

प्रिंट मीडिया में दिए गए विज्ञापन खर्च के बारे में ठाकुर मंत्री ने बताया कि 2017-18 में इस माध्यम पर अधिकतम खर्च 636.09 करोड़ रुपये हुआ था. 2015-16 में यह व्यय 508.22 करोड़ रुपये और 2016-17 में 468.53 करोड़ रुपये था. इस साल 7 दिसंबर तक सरकार ने प्रिंट मीडिया में विज्ञापनों पर 91.96 करोड़ रुपये खर्च किए थे.

केंद्रीय मंत्री ने यह भी जोड़ा कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के माध्यम से विदेशी मीडिया में विज्ञापनों पर सरकार के किसी भी मंत्रालय या विभाग द्वारा कोई खर्च नहीं किया गया.

गौरतलब है कि साल 2020 में एक आरटीआई आवेदन जवाब में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने बताया था कि केंद्र सरकार द्वारा 2019-20 के दौरान विज्ञापनों पर औसतन प्रति दिन 1.95 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं.

अखबार, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, होर्डिंग इत्यादि के माध्यम से सरकार ने खुद के प्रचार के लिए 2019-20 में 713.20 करोड़ रुपये खर्च किए थे. इसमें से 295.05 करोड़ रुपये प्रिंट, 317.05 करोड़ रुपये इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और 101.10 करोड़ रुपये आउटडोर विज्ञापन में खर्च किए गए थे.

जून, 2019 में मुंबई स्थित आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली द्वारा दायर आवेदन के जवाब में मंत्रालय ने बताया था कि प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, आउटडोर मीडिया में विज्ञापन देने में 3,767.26 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं.

इससे एक साल पहले गलगली के एक अन्य आरटीआई आवेदन पर मंत्रालय ने मई, 2018 में बताया था कि मोदी सरकार ने जून 2014 से लेकर सरकारी विज्ञापनों पर 4,343.26 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.

द वायर ने दिसंबर 2018 में अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि किस तरह यूपीए के मुकाबले मोदी सरकार में विज्ञापन पर दोगुनी राशि खर्च की गई है.

लोकसभा में तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने बताया था कि केंद्र सरकार ने साल 2014 से लेकर सात दिसंबर 2018 तक में सरकारी योजनाओं के प्रचार प्रसार में कुल 5245.73 करोड़ रुपये की राशि खर्च की है. यह यूपीए सरकार के 10 साल में खर्च हुए कुल 5,040 करोड़ रुपये की राशि से भी ज्यादा थी.

साभार- द वायर