पंजाब: किसानों के लिए आफत बना खरीफ सीजन,बाढ़ के बाद अब कीटों का हमला!

 

पहले जुलाई में बारिश के कारण किसानों की 2 लाख एकड़ से अधिक धान और बासमती की फसल को भारी नुकसान हुआ. फिर अगस्त में, हिमाचल प्रदेश में मानसून के कारण अधिकारियों को भाखड़ा बांध से अतिरिक्त पानी छोड़ना पड़ा, जिसके चलते पंजाब में बड़े पैमाने पर खेती कई दिनों तक पूरी तरह से पानी में डूबी रही और अब सितंबर में धान की फसल कीटों के हमले का सामना कर रही है. पंजाब के मालेरकोटला, संगरूर, नाभा और मोगा जिले के कुछ गांवों में समस्या गंभीर है.

किसान, धान की पत्ती मोड़ने वाला कीट जैसे कीटों के हमले से जूझ रहे हैं. एक आम कीट जो धान की फसलों को प्रभावित करता है, जिससे फसल को काफी नुकसान होता है. किसान अगस्त और सितंबर में बारिश की कमी को कीटों के हमले की शुरुआत का कारण मानते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, कटाई से दो से तीन सप्ताह पहले पर्याप्त बारिश आमतौर पर इन कीटों को नियंत्रित करने में मदद करती है, लेकिन इस साल राज्य में सितंबर में कम बारिश हुई.

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार मलेरकोटला के गोवारा गांव के किसान अबजिंदर संघा ने अपने खेतों में काला तेला, पट्टा लपेट और गोभ सुंडी होने की बात कही. किसान कीटों को नियंत्रित करने के लिए महंगे कीटनाशकों का सहारा ले रहे हैं, यहां तक कि छिड़काव के लिए श्रमिकों की भी कमी है. मौजूदा स्प्रे इन कीटों को खत्म करने में कारगर साबित नहीं हुए हैं, जिससे लागत लगभग 1,000 रुपये से 1,200 रुपये प्रति एकड़ तक बढ़ गई है.

उसी जिले के एक अन्य किसान गुरजीत सिंह भी अपने 50 एकड़ धान और बासमती के खेतों पर कीट के हमले का खामियाजा भुगत रहे हैं. महंगे स्प्रे और मजदूरों की लागत किसानों के लिए आफत बन रही है. मलेरकोटला के नियामतपुर गांव के अमरजीत सिंह ने भी अपनी 7 एकड़ जमीन पर काला तेला और पट्टा लपेट के संक्रमण की बात कही. किसानों का कहना है कि सरकार को राज्य में फसल नुकसान के आकलन के समय इन मामलों पर भी विचार करना चाहिए.

इस साल पंजाब में 32 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई हुई है, जिसमें लगभग 5.96 लाख हेक्टेयर में बासमती किस्म शामिल है. विशेषज्ञों का कहना है कि धान और बासमती की फसलों को कीटों के हमले के प्रति कम संवेदनशील माना जाता है, लेकिन कभी-कभी बीपीएच संक्रमण के कारण पैदावार कम हो सकती है या समय से पहले कटाई हो सकती है. कटाई आम तौर पर अक्टूबर के पहले सप्ताह में शुरू होती है, बासमती 1509 एकमात्र अपवाद है, जो जून में बोया जाता है और वर्तमान में कुछ जिलों में काटा जा रहा है.

पत्रकार से बात करते हुए, संगरूर के मुख्य कृषि अधिकारी, हरबंस सिंह ने कहा कि ये कीट आर्द्र मौसम में पनपते हैं जब बारिश नहीं होती है. हालांकि पट्टा लपेट के कुछ मामले सामने आए हैं, लेकिन काला तेला का कोई भी मामला अब तक उनके ध्यान में नहीं आया है. उन्होंने कीटनाशकों के समय पर छिड़काव की आवश्यकता पर जोर दिया और आश्वासन दिया कि वे क्षेत्र की रिपोर्ट एकत्र करेंगे.