क्रिसिल रिपोर्ट: खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ने की मार शहरी गरीबों पर ज्यादा, ग्रामीण गरीब भी झुलसे!

 

घरेलू रेटिंग एजेंसी क्रिसिल (CRISIL) ने बुधवार को कहा कि जुलाई में खुदरा मुद्रास्फीति (Retail Inflation) के 15 महीनों के उच्च स्तर पर पहुंचने के कारण सबसे अधिक मार शहरी गरीबों पर पड़ी है. क्रिसिल मार्केट इंटेलिजेंस और एनालिटिक्स ने कहा कि शहरी क्षेत्रों में उच्च आय वर्ग को सबसे कम मुद्रास्फीति के बोझ का सामना करना पड़ा, क्योंकि रोजमर्रा के उनके उपभोग में खपत वाले खाद्यानों की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत कम है.

आधिकारिक आंकड़ों के कुछ दिनों बाद जारी नोट में कहा गया है, ‘शहरी क्षेत्रों में सबसे गरीब वर्ग को जुलाई में सबसे अधिक मुद्रास्फीति दर का सामना करना पड़ा.’जुलाई में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 7.44 प्रतिशत पर पहुंच गई है, जो पिछले 15 महीनों का उच्चतम स्तर है. क्रिसिल नोट में कहा गया है, ”शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में सबसे गरीब वर्ग को अपने से अधिक आय वाले समकक्षों की तुलना में अधिक मुद्रास्फीति का बोझ झेलना पड़ा, क्योंकि खाद्य मुद्रास्फीति तेजी से बढ़ी है.”

क्रिसिल की रिपोर्ट कहती है कि शहरी इलाकों में निचले (गरीब) 20 प्रतिशत आय समूह के लिए जुलाई में खुदरा मुद्रास्फीति 8.5 प्रतिशत रही जबकि ग्रामीण इलाकों में यह 7.9 प्रतिशत पर रही. जून में इन दोनों तबकों के लिए खुदरा मुद्रास्फीति क्रमश: 4.9 प्रतिशत एवं 4.7 प्रतिशत थी. क्रिसिल ने कहा कि उसने राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के डेटा का इस्तेमाल किया और तीन व्यापक आय समूहों – निचले 20 प्रतिशत, मध्य 60 प्रतिशत और ऊपरी 20 प्रतिशत आबादी की खाद्यान खपत को जुलाई मुद्रास्फीति के साथ मैप किया.

नोट से पता चलता है कि जुलाई और जून के बीच शीर्ष 20 प्रतिशत आय अर्जित करने वाले शहरी अमीरों के लिए यह असर कोई खास नहीं था. शहरी क्षेत्रों में शीर्ष 20 प्रतिशत आय अर्जित करने वाल शहरी अमीरों के लिए सीपीआई जून में 5 प्रतिशत से बढ़कर जुलाई में 7.1 प्रतिशत हो गई, जबकि ग्रामीण क्षेत्र के अमीरों के लिए यह 4.9 प्रतिशत से बढ़कर 7.3 प्रतिशत हो गई. नोट में कहा गया है कि शहरी क्षेत्रों में उच्च आय वर्ग को सबसे कम मुद्रास्फीति का बोझ झेलना पड़ा, क्योंकि उनके खाद्यान में रोजाना के खपत वाले भोजन की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत कम है.

गरीब तबके में भी, शहरी गरीब वर्ग को अपने समकक्ष ग्रामीण गरीब की तुलना में अधिक बोझ का सामना करना पड़ा क्योंकि भोजन (शहरी में 12.3 प्रतिशत बनाम ग्रामीण में 11 प्रतिशत) और ईंधन मुद्रास्फीति (4.4 प्रतिशत बनाम 3.3 प्रतिशत) दोनों अधिक थे. नोट में कहा गया है कि आम तौर पर दर-निर्धारण पैनल वर्तमान की तरह आपूर्ति पक्ष के झटकों को नजरअंदाज कर देता है. उसे उम्मीद है कि मौद्रिक नीति समिति अक्टूबर में अपनी अगली बैठक में दरों पर रोक लगाएगी और अगले वित्त वर्ष के शुरुआती महीनों में ही दरों में कटौती करेगी.