CAG रिपोर्ट का खुलासा: डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला के आबकारी विभाग में हुईं भारी गड़बड़ियां!

 

कैग ने हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के शराब महकमे में शराब बनाने से लेकर बेचने और जब्त करने तक भारी गड़बड़ियां और तय नियम लागू नहीं करके किये जा रहे फर्जीवाड़े का खुलासा किया है. हरियाणा सरकार अपनी आबकारी नीति में होलोग्राम और क्विक रिस्पांस (क्यूआर) कोड आधारित ‘ट्रैक एंड ट्रेस’ सिस्टम, सीसीटीवी इंस्टाल करके पूर्ण पारदर्शिता और सख्त नियमों का दावा करती रही है, वहीं नियंत्रक और महालेखा परीक्षक भारत –कैग (CAG) ने 31 मार्च, 2021 को अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आबकारी विभाग इन मानदंडों का पालन करने में विफल रहा है.

 राज्य विधानसभा के समक्ष पेश की गई राजस्व क्षेत्र की रिपोर्ट में उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की अध्यक्षता में राज्य के आबकारी विभाग द्वारा बड़े पैमाने पर विसंगतियों और मानदंडों का पालन न करने की ओर इशारा किया गया है. कैग ने अपनी जांच में पाया है कि सीसीटीवी कैमरे, क्यूआर आधारित होलोग्राम लगाने से संबंधित आबकारी नीतियों के प्रावधान; ट्रांजिट स्लिप आदि लागू नहीं किए गए थे.

राज्य सरकार ने अनाज से शराब के उत्पादन के लिए मानदंड निर्धारित नहीं किए थे जिसके कारण उत्पादन में अत्यधिक अपव्यय पर संभावित राजस्व हानि संभव है. आबकारी एवं पुलिस विभाग के मध्य समन्वय न होने के कारण जब्त शराब पर 1,517 दिनों की देरी के बाद जुर्माना लगाया गया.

 यह भी पाया गया है कि विभाग ने जब्त की गई शराब को समय पर नष्ट नहीं किया था, जिसके कारण भारी मात्रा में जब्त शराब की चोरी के मामले सामने आए थे. विभाग माइक्रोब्रेवरीज से सैंपल लेने में विफल रहा. कैग की रिपोर्ट के अनुसार, “विभाग द्वारा डिस्टिलरी के पास पड़े बिना बिके स्टॉक से संबंधित रिकॉर्ड की निगरानी नहीं की गई थी. आबकारी अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन में अवैध शराब से संबंधित मामलों में अपराधियों को छोड़ दिया गया.

इसके अलावा, आंतरिक ऑडिट विंग के पास कोई मैनुअल नहीं था. प्रासंगिक अधिनियम और नियमों के प्रावधानों को सख्ती से लागू करने और प्रभावी निगरानी की आवश्यकता पूर्ववर्ती पैराग्राफ में हाइलाइट किए गए ₹ 116.76 करोड़ की गैर / कम वसूली से प्रमाणित होती है.” हालांकि, मार्च 2022 में एग्जिट कांफ्रेंस के दौरान विभाग ने सभी ऑडिट आपत्तियों को स्वीकार कर लिया था. सीसीटीवी वर्ष 2020-21 के लिए आबकारी नीति में प्रावधान है कि सभी थोक लाइसेंसधारी परिसरों (एल-1/एल-13) में सीसीटीवी कैमरे भी लगाए जाने थे, जोकि आबकारी विभाग को लाइव फीड देने के लिए लाइसेंसधारियों को अपने खर्च पर लगवाने थे.

ऐसे सीसीटीवी कैमरों से लाइव फीड डीईटीसी (आबकारी) को उपलब्ध कराया जाना था, जिसे समय-समय पर लाइव फीड की समीक्षा करनी थी और कोई उल्लंघन पाए जाने पर दंडात्मक कार्यवाही की सिफारिश करना था. हालांकि, एक ऑडिट में पाया गया कि जून 2021 से पहले केवल डिस्टिलरी में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे और खुद डिस्टिलरी के स्वामित्व में थे. हालांकि, सीसीटीवी की संख्या, उनकी स्थिति, उनके लाइव फीड की निगरानी, फुटेज के भंडारण और एमआईएस के निर्माण पर मानदंड तय नहीं किए गए थे.

इन मानदंडों के अभाव में, ईआई, डीईटीसी या ईटीसी के स्तर पर की गई डिस्टिलरी की निगरानी के संबंध में कोई आश्वासन प्राप्त नहीं किया जा सका. डिस्टिलरीज में फ्लो मीटर का अभाव 2020-21 की आबकारी नीति में अनिवार्य किया गया है कि डिस्टिलरीज द्वारा उत्पादित और उपयोग किए जाने वाले एक्स्ट्रा न्यूट्रल अल्कोहल ईएनए की मात्रा का प्रभावी ढंग से आकलन और निगरानी करने के लिए विभाग द्वारा राज्य के सभी डिस्टिलरीज में फ्लो मीटर लगाए जाने थे. ऑडिट में पाया गया है कि फ्लो मीटर लगाने का नीतिगत निर्णय होने के बावजूद, इसे ऑडिट किए जाने की तारीख तक लागू नहीं किया गया था.

इसके बजाय, डिस्टिलरी द्वारा उत्पादित और उपयोग किए गए ईएनए की मात्रा की मैन्युअल रूप से निगरानी की गई थी. इस प्रकार, नीतियों में फ्लो मीटर लगाने के उद्देश्य को पूरा नहीं किया गया. ट्रांजिट स्लिप जारी नहीं की गईं 2019-20 और 2020-21 की आबकारी नीतियों के अनुसार, हरियाणा राज्य से अन्य राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में शराब ले जाने वाले वाहनों पर नियंत्रण रखने के लिए ट्रांजिट स्लिप जारी करना आवश्यक था. इसके अलावा, ऐसे मामलों में ट्रांजिट पर्चियां ले जानी थीं ताकि अन्य राज्यों के लिए बनी शराब हरियाणा राज्य में उतारी या बेची न जा सके.

ऑडिट में पाया गया कि विभाग ने ट्रांजिट पर्ची के इस प्रावधान को लागू करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया, जो हरियाणा से अन्य राज्यों के लिए शराब ले जाने वाले वाहनों की जांच करने के लिए बहुत जरूरी है. विभाग अन्य राज्यों को जाने वाली शराब और हरियाणा राज्य से गुजरने वाले शराब ढोने वाले वाहनों से अनजान था. इस प्रकार, नकली और मिलावटी शराब से बचाव के निर्धारित निवारक उपायों का पालन न करने से नीति के प्रावधानों का उद्देश्य विफल हो गया. रसायनिक जांच में देरी रसायनिक जांच प्रक्रिया को पूरा करने के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं थी, इसी वजह से राज्य में अनिवार्य कैमिकल प्रमाण पत्र के बिना ही शराब की बिक्री हो रही थी. इस प्रकार, डिस्टिलरी इस आश्वासन के तहत परीक्षण के लिए नमूने भेज रही थीं कि शराब का स्टॉक लोगों के पीने के लिए उपयुक्त है.

इस लापरवाही की वजह से जहरीली शराब के बिकने के खतरे बढ़ जाते हैं. बीयर के सैम्पल भी नहीं लिए गए वर्ष 2020-21 के लिए हरियाणा आबकारी नीति के पैरा 9.10 में कहा गया है कि, डीईटीसी (आबकारी) को हर महीने जांच के लिए एक बार बीयर के नमूनों को निकटतम सरकारी उत्पाद शुल्क प्रयोगशाला में भेजना अनिवार्य था और प्राप्त रिपोर्ट को माइक्रोब्रेवरीज के परिसर में लगाया जाना था. वर्ष 2020-21 के चार डी.ई.टी.सी. (आबकारी) के 21 माइक्रोब्रेवरीज के अभिलेखों की जांच के दौरान, यह पाया गया कि बीयर के नमूने जांच के लिए सरकारी आबकारी प्रयोगशाला को नहीं भेजे गए थे. इस तरह के नियंत्रणों के अभाव में माइक्रोब्रेवरीज में परोसी जाने वाली बीयर में अल्कोहल की मात्रा और गुणवत्ता का पता नहीं लगाया जा सका. ऑडिट यह सुनिश्चित नहीं कर सकी कि विभाग ने ऐसे नियंत्रण के अभाव में शराब की स्वस्थ पीने की आदतों को बढ़ावा देने के उद्देश्य को कैसे सुनिश्चित किया. डीईटीसी (आबकारी) गुरुग्राम (पूर्व), गुरुग्राम (पश्चिम) (नवंबर 2021) फरीदाबाद (दिसंबर 2021) और पंचकुला (जुलाई 2021) ने कहा कि ऑडिट द्वारा उठाए गए बिंदुओं को भविष्य के नमूनों के लिए ध्यान में रखा जाएगा.