पत्रकारों और पत्रकारिता पर ‘बढ़ती पुलिसिंग’ निंदनीय: दिल्ली पत्रकार संघ

 

दिल्ली पत्रकार संघ (डीयूजे) ने देश में पत्रकारों और पत्रकारिता पर ‘बढ़ती पुलिसिंग’ (पुलिस नियंत्रण) और समुदायों, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणास्पद भाषणों की बढ़ती प्रवृत्ति पर गंभीर चिंता व्यक्त की है.

बीते 15 जनवरी को जारी एक संयुक्त बयान में दिल्ली पत्रकार संघ के अध्यक्ष एसके पांडे और इसकी महासचिव सुजाता मधोक ने संबंधित अधिकारियों से प्राथमिकता के आधार पर मीडिया काउंसिल ऑफ इंडिया स्थापित करने का आह्वान किया, जो अक्सर ही अधिकांश मौकों पर अनिर्णय का शिकार रहने वाले ‘शक्तिविहीन’ प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) और समाचार प्रसारण एवं डिजिटल मानक प्राधिकरण (एनबीडीएसए) की जगह ले सके.

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) की हालिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए पत्रकार संघ ने कहा कि रिपोर्ट ‘आज भारत में पत्रकारों और पत्रकारिता पर बढ़ते पुलिस नियंत्रण’ को दर्शाती है.

संगठन ने आगे कहा कि एचआरडब्ल्यू की रिपोर्ट में मोहम्मद जुबैर, रूपेश कुमार सिंह, सिद्दीक कप्पन सहित कई गिरफ्तार और जेल में बंद पत्रकारों को लेकर चिंता व्यक्त की गई है.

एचआरडब्ल्यू की रिपोर्ट पर विचार करते हुए पत्रकार संगठन ने कहा कि फहद शाह और सज्जाद गुल की गिरफ्तारी के साथ कश्मीर में स्थिति सबसे खराब है.

संगठन ने कहा, ‘ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट कहती है कि अगस्त 2019 से कश्मीर में 35 पत्रकारों ने पुलिस की पूछताछ, छापेमारी, धमकी, शारीरिक हमले, घूमने की स्वतंत्रता पर पाबंदी या अपनी रिपोर्टिंग के चलते मनगढ़ंत आपराधिक मामलों का सामना किया है.’

एचआरडब्ल्यू की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया, ‘सबसे निंदनीय रूप से रिपोर्ट कहती है कि सरकार ने कार्यकर्ता समूहों और मीडिया पर अपनी कार्रवाई तेज और व्यापक कर दी है. रिपोर्ट मीडिया पर अन्य हमलों के अलावा मीडियाकर्मियों को लक्षित करने के लिए पेगासस स्पायवेयर के उपयोग का भी उल्लेख करती है.’

दिल्ली पत्रकार संघ ने समाचार चैनल एनडीटीवी के अधिग्रहण पर भी चिंता व्यक्त की और उसके बाद चैनल से हुए इस्तीफों का भी जिक्र किया, जिनमें एंकर रवीश कुमार, समूह की अध्यक्ष सुपर्णा सिंह, मुख्य रणनीति अधिकारी अरिजीत चटर्जी और मुख्य तकनीकी एवं उत्पाद अधिकारी कंवलजीत सिंह बेदी के इस्तीफे शामिल हैं.

संगठन ने कहा, ‘इस्तीफों का यह सिलसिला कई गुना बढ़ सकता है, क्योंकि अडाणी समूह ने एनडीटीवी समूह का पूरा नियंत्रण ले लिया है.’

एनडीटीवी के मुद्दे पर इसने आगे कहा कि यह उन ‘आखिरी चैनलों में से एक था, जिसने केवल सरकार और कॉरपोरेट प्रचार को बढ़ावा देने और विभाजनकारी, सांप्रदायिक नफरती भाषण को बढ़ावा देने के बजाय कुछ हद तक स्वतंत्र पत्रकारिता की.’

संगठन ने समाज में खाई पैदा करने में टीवी चैनलों की भूमिका पर सुप्रीम कोर्ट की हाल की टिप्पणियों और शीर्ष अदालत द्वारा राज्य सरकारों एवं पुलिस को नफरत फैलाने वाले भाषणों को बढ़ावा देने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देशों का स्वागत किया.

पत्रकार संघ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट हेट स्पीच के खिलाफ कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, जिनमें सुदर्शन न्यूज टीवी का ‘यूपीएससी जिहाद’ अभियान, मीडिया में चला कोराना जिहाद अभियान और धर्म संसद, जिसमें खुलेआम मुस्लिम विरोधी बयान दिए गए थे, शामिल हैं. साभार- द वायर