मनरेगा में हुए भ्रष्टाचार की केवल 14 फीसदी ही वसूली कर पाई सरकार!

 

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना आए दिन भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों को लेकर सुर्खियों में है. वहीं इस योजना में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए सोशल ऑडिट इकाइयां घोटाले में पैसों की वसूली के लिए असमर्थ हैं. चालू वित्त वर्ष में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, लेखा परीक्षकों द्वारा चिह्नित राशि का 14% से भी कम अब तक वसूल किया गया है. पिछले वित्तीय वर्षों के आंकड़े भी उतने ही निराशाजनक हैं.

वित्त वर्ष 2022-23 की भी कुछ ऐसी ही कहानी है; सुधारात्मक उपाय करने के बाद, वसूली योग्य राशि ₹86.2 करोड़ आंकी गई थी, लेकिन वसूली केवल ₹18 करोड़ हुई, जो कुल का केवल 20.8% थी. 2021-22 में, सामाजिक लेखा परीक्षा इकाइयों में से एक ने ₹171 करोड़ की सबसे अधिक मात्रा में हेराफेरी को चिह्नित किया, लेकिन केवल ₹26 करोड़, कुल का 15%, वसूल किया गया.

वहीं योजना को नियंत्रित करने वाले अधिनियम की धारा 17 कहती है कि ग्राम सभा “कार्यों के निष्पादन की निगरानी करेगी” प्रत्येक राज्य में सामाजिक लेखा परीक्षा इकाइयां होती हैं जिनसे कार्यान्वयन प्राधिकारियों से स्वतंत्र रूप से काम करने की अपेक्षा की जाती है.

वहीं इस बीच संबंधित मंत्रालय ने राज्यों, मनरेगा आयुक्तों, नागरिक समाज और अन्य हितधारकों की सामाजिक लेखा परीक्षा इकाइयों को आमंत्रित करते हुए एक दिवसीय सेमिनार में संसाधन की कमी से जूझ रही सामाजिक लेखा परीक्षा इकाइयों, प्रशिक्षण या पर्याप्त कर्मियों के बिना काम करने की एक निराशाजनक तस्वीर उभर कर सामने आई. सामाजिक लेखा परीक्षा इकाई की एकमात्र जिम्मेदारी कदाचार के मामलों को चिह्नित करना है. पैसा वसूलना और जिम्मेदार अधिकारियों को फटकार लगाना राज्य सरकारों पर निर्भर है.

अंग्रेजी अखबार द हिन्दू की एक रिपोर्ट के अनुसार सेमिनार में शामिल हुईं सोशल अकाउंटेबिलिटी फोरम फॉर एक्शन एंड रिसर्च की रक्षिता स्वामी ने कहा, “निराशाजनक वसूली दर ऑडिट प्रक्रिया की विश्वसनीयता को खतरे में डालती है, क्योंकि यह पूरी प्रक्रिया को निरर्थक बना देती है.