सामाजिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों ने की राजनीतिक बंदियों की रिहाई की मांग!

 

दिल्ली में राज्य दमन अभियान के बैनर तले बुलाए गए सामाजिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों के सम्मेलन में यूएपीए जैसे कठोर कानून के तहत गिरफ्तार राजनीतिक कैदियों की रिहाई की मांग उठाई गई. साथ ही भारतीय संसाधनों की कॉरपोरेट लूट, बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकारों के दमन, दलितों–धार्मिक अल्पसंख्यकों,आदिवासियों और भारत के बहुसंख्यक लोगों के खिलाफ सैन्यीकरण के खिलाफ आवाज उठाई गई.

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सरोज गिरि ने भीमा-कोरेगांव षड़यंत्र में जेल में बंद राजनीतिक बंदियों पर बोलते हुए कहा कि अधिकांश कार्यकर्ता संसाधनों की कॉर्पोरेट लूट और आदिवासियों के क्रूर दमन के खिलाफ मुखर रहे हैं. इन लोगों को इस तरह की लूट और दमन के खिलाफ आवाजों को शांत करने के लिए कैद किया गया है.

उन्होंने 11 जनवरी, 2023 को बीजापुर और सुकमा के छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमावर्ती गांवों में हेलीकाप्टरों और ड्रोन का उपयोग करते हुए राज्य बलों द्वारा किए गए हवाई बम विस्फोटों पर कहा नागरिक क्षेत्रों में ये हवाई बमबारी आंतरिक संघर्ष से संबंधित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय चार्टर्स और सम्मेलनों के खिलाफ की जाती है.

इसके बाद खालिद सैफी की पत्नी नरगिस सैफी ने कहा कि सैफी पर गलत तरीके से ‘दिल्ली दंगे’ 2020 की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था. उन्होंने कहा कि जब मुस्लिम महिलाएं रूढ़ियों को तोड़ती हैं और लोगों के संघर्षों में सबसे आगे आती हैं, तो सरकार यह मानकर प्रतिक्रिया देती है कि कोई गुप्त रूप से भड़काने वाला होगा जिसने उन्हें संगठित किया होगा. उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे वह इस तरह के आयोजनों के दर्शकों में बैठती थीं, लेकिन अब वो उस जगह हैं जहां से सभी राजनीतिक बंदियों की आवाजों को बचाने की लड़ाई लड़नी है. क्योंकि खालिद सैफी जैसी सभी लोकतांत्रिक ताकतों को सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है.

इसके बाद गलत तरीके से कैद दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हनी बाबू की पत्नी जेनी रोवेना ने अपनी बात रखते हुए कहा कि ओबीसी के अधिकारों के लिए विश्वविद्यालयों में उनकी सक्रियता के कारण हनी पर बिना किसी सबूत के एल्गार परिषद नामक संगठन का हिस्सा होने का गलत आरोप लगाया गया था. उन्होंने बताया कि कैसे एलगार परिषद ने फासीवाद के खिलाफ शपथ ली और फासीवाद के खिलाफ संघर्ष में दलित, बहुजन, मुस्लिम और आदिवासियों को एकजुट करने की जरूरत थी, लेकिन बिना किसी सबूत के माओवादियों द्वारा वित्तपोषित एक षड्यंत्रकारी संगठन होने का आरोप लगाया गया.

दिल्ली में राज्य दमन अभियान के बैनर तले बुलाए गए सामाजिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों के सम्मेलन में यूएपीए जैसे कठोर कानून के तहत गिरफ्तार राजनीतिक कैदियों की रिहाई की मांग उठाई गई. साथ ही भारतीय संसाधनों की कॉरपोरेट लूट, बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकारों के दमन, दलितों–धार्मिक अल्पसंख्यकों,आदिवासियों और भारत के बहुसंख्यक लोगों के खिलाफ सैन्यीकरण के खिलाफ आवाज उठाई गई.

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सरोज गिरि ने भीमा-कोरेगांव षड़यंत्र में जेल में बंद राजनीतिक बंदियों पर बोलते हुए कहा कि अधिकांश कार्यकर्ता संसाधनों की कॉर्पोरेट लूट और आदिवासियों के क्रूर दमन के खिलाफ मुखर रहे हैं. इन लोगों को इस तरह की लूट और दमन के खिलाफ आवाजों को शांत करने के लिए कैद किया गया है. उन्होंने 11 जनवरी, 2023 को बीजापुर और सुकमा के छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमावर्ती गांवों में हेलीकाप्टरों और ड्रोन का उपयोग करते हुए राज्य बलों द्वारा किए गए हवाई बम विस्फोटों पर कहा नागरिक क्षेत्रों में ये हवाई बमबारी आंतरिक संघर्ष से संबंधित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय चार्टर्स और सम्मेलनों के खिलाफ की जाती है.

खालिद सैफी की पत्नी नरगिस सैफी ने कहा कि सैफी पर गलत तरीके से ‘दिल्ली दंगे’ 2020 की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था. उन्होंने कहा कि जब मुस्लिम महिलाएं रूढ़ियों को तोड़ती हैं और लोगों के संघर्षों में सबसे आगे आती हैं, तो सरकार यह मानकर प्रतिक्रिया देती है कि कोई गुप्त रूप से भड़काने वाला होगा जिसने उन्हें संगठित किया होगा. उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे वह इस तरह के आयोजनों के दर्शकों में बैठती थीं, लेकिन अब वो उस जगह हैं जहां से सभी राजनीतिक बंदियों की आवाजों को बचाने की लड़ाई लड़नी है. क्योंकि खालिद सैफी जैसी सभी लोकतांत्रिक ताकतों को सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है.

इसके बाद गलत तरीके से कैद दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हनी बाबू की पत्नी जेनी रोवेना ने अपनी बात रखते हुए कहा कि ओबीसी के अधिकारों के लिए विश्वविद्यालयों में उनकी सक्रियता के कारण हनी पर बिना किसी सबूत के एल्गार परिषद नामक संगठन का हिस्सा होने का गलत आरोप लगाया गया था. उन्होंने बताया कि कैसे एलगार परिषद ने फासीवाद के खिलाफ शपथ ली और फासीवाद के खिलाफ संघर्ष में दलित, बहुजन, मुस्लिम और आदिवासियों को एकजुट करने की जरूरत थी, लेकिन बिना किसी सबूत के माओवादियों द्वारा वित्तपोषित एक षड्यंत्रकारी संगठन होने का आरोप लगाया गया.