अरावली की 50 हजार एकड़ जमीन प्राइवेट कंपनियों के हाथों में देने की तैयारी!

 

सरकार की ओर से पेश किए गए वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 को राज्य के जंगलों के लिए आत्मघाती बताते हुए पर्यावरणविदों ने इसे वापस लेने की मांग की है. लोकसभा की संयुक्त संसदीय समिति को भेजी गई जानकारी में इस बात का खुलासा हुआ है कि नये विधेयक के जरिये अरावली की 50 हजार एकड़ जमीन का कमर्शियल यूज के लिए रास्ता खोलने की तैयारी है.

वहीं पर्यावरणविदों ने हरियाणा में वनों के लिए एक्ट को प्रभावी बनाने के लिए इसमें बड़े बदलाव की मांग की है. राज्य का कुल वन क्षेत्र करीबन 3.62 प्रतिशत है इसमें से प्रभावी संरक्षित वन क्षेत्र केवल 2 प्रतिशत है. फॉरेस्ट एक्ट 1980 में संशोधन करने के लिए 29 मार्च को लोकसभा में पेश किया गया विधेयक कथित रूप से  जंगल की जमीन के बड़े इलाके और गतिविधियों के लिए वन विभाग की मंजूरी की आवश्यकताओं को कम करने और वनों की सुरक्षा से जुड़ी शक्तियों को कम करता है.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा जारी ‘द डेजर्टिफिकेशन एंड लैंड डिग्रेडेशन एटलस-2021’ के निष्कर्षों पर प्रकाश डालते हुए, प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 3.6 लाख हेक्टेयर (8.2 प्रतिशत) खराब हो गया था ऐसे में नये वन कानून में वनों के संरक्षण के लिए एक मजबूत कानून बनाने की बजाये प्राइवेट हाथों में हजारों एकड़ जमीन देने की कोशिश हो रही है.

अंग्रेजी अखबार द ट्रिब्यून में छपी एर रिपोर्ट के अनुसार गुरुग्राम और नूंह में 10 हजार एकड़ से अधिक अरावली क्षेत्र पहले से ही असुरक्षित हैं और जल्द ही नष्ट हो सकता है.

अरावली बचाओ नागरिक आंदोलन की सह-संस्थापक नीलम अहलूवालिया के अनुसार, “हरियाणा में देश में सबसे कम वन क्षेत्र हैं और जिसके कारण सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण है. एफसीए संशोधन विधेयक, 2023, रियल एस्टेट विकास और व्यावसायीकरण के लिए अरावली जंगलों की 50 हजार एकड़ भूमि को खोल देगा क्योंकि इन जंगलों को अभी तक “डीम्ड वन” के रूप में संरक्षित नहीं किया गया है”