प्याज के बाद लहसुन के दाम में बढ़ोतरी ने बिगाड़ा रसोई का बजट!

 

लहसुन की कीमतों में अचानक बढ़ोतरी ने आम लोगों को खाद्य महंगाई का अहसास करवा दिया है, क्योंकि पहले से ही प्याज 60 रुपये प्रति किलोग्राम खरीदकर लोग खा रहे हैं. प्याज की तुलना में तेज स्वाद वाला मसालेदार लहसुन वर्तमान में लगभग 210 रुपये प्रति किलोग्राम पर बिक रहा है, जबकि एक साल पहले यह 40 रुपये और तीन महीने पहले 150 रुपये था.

व्यापारी लहसून (लहसुन) की कीमतों में बढ़ोतरी का कारण खरीफ फसल की कटाई और आवक में देरी को बता रहे हैं. प्याज की तरह लहसुन की खेती भी ख़रीफ़ और रबी दोनों मौसमों में की जाती है. ख़रीफ़ लहसुन की बुआई जून-जुलाई में की जाती है और कटाई अक्टूबर-नवंबर में की जाती है, जबकि रबी की फसल सितंबर-नवंबर से लेकर मार्च-अप्रैल में की जाती है.

मध्य प्रदेश के मंदसौर के एक प्रमुख व्यापारी ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार के रिपोर्टर को बताया, “इस बार मानसून की बारिश में देरी हुई और बुआई अगस्त में ही हो सकी. इसलिए, कटाई में देरी हो गई है और नई फसल जनवरी में ही बाजार में आनी शुरू हो जाएगी. और इस बार बहुत अच्छी फसल नहीं लगती है, सितंबर-अक्टूबर में बहुत अधिक बारिश से भी कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला,”

जिस तरह प्याज के लिए महाराष्ट्र के लासलगांव में बड़ी मंडी है उसी तरह लहसुन के लिए मंदसौर को बड़ी मंडी माना जाता है. मंदसौर, लहसुन के मामले में देश का सबसे बड़ा थोक बाजार होने के बावजूद औसतन 155 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से लहसुन की आवक हो रही है, जबकि पिछले साल इस समय केवल 12 रुपये और तीन महीने पहले 90 रुपये था. इस महीने की शुरुआत में कीमतें लगभग 200 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गईं, जबकि नई फसल की उम्मीद में इसमें थोड़ी नरमी आई है.

भारत में सालाना लगभग 30 लाख टन लहसुन का उत्पादन होता है, जिसकी फसल लगभग 3.5 लाख हेक्टेयर में उगाई जाती है. प्रमुख उत्पादक मध्य प्रदेश (19-20 लाख टन), राजस्थान (5-5.1 लाख टन), उत्तर प्रदेश (2-2.1 लाख टन) और गुजरात (1-1.1 लाख टन) हैं. लहसुन की मांग आमतौर पर अक्टूबर-मार्च के दौरान बढ़ती है, जो शादियों का मौसम भी है. व्यापारी ने कहा, “अब हम जो देख रहे हैं वह स्पष्ट रूप से आपूर्ति की तुलना में मांग का परिणाम है.”

इस बीच, लासलगांव मंडी में प्याज की कीमतें एक सप्ताह पहले तक 38-40 रुपये के स्तर से गिरकर 21.5 रुपये प्रति किलोग्राम पर आ गई हैं. यह केंद्र के 7 दिसंबर के फैसले के बाद आया है, जिसमें 31 मार्च 2024 तक किसी भी तरह के प्याज निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इससे पहले, प्याज शिपमेंट पर न्यूनतम कीमत 800 डॉलर प्रति टन थी, जिसके नीचे इसका निर्यात नहीं किया जा सकता था. लहसून और प्याज़ दोनों का वास्तविक स्वाद ग्राहक मार्च के बाद ही उठा पाएंगे, जब उनकी रबी की फसल कट जाएगी. लेकिन महाराष्ट्र और कर्नाटक में भूजल स्तर में गिरावट के कारण असर लहसुन से ज्यादा रबी की फसल प्याज पर पड़ सकता है.